संस्थापक
“मुझे अब भी याद है कि 15 फरवरी 2014 की सुबह मैं अपने पेट में एक खोखलेपन के एहसास के साथ जगी थी। मुझे खालीपन और दिशाहीनता महसूस हो रही थी। मैं चिड़चिड़ी हो गयी थी और सिर्फ रोती रहती थी। मुझे एक साथ बहुत सारे काम करना पसंद है पर अब निर्णय लेना भी अचानक से एक बोझ जैसा लगने लगा था। हर सुबह जागना एक संघर्ष बन गया था। मैं थक चुकी थी और अक्सर सब कुछ छोड़ देने के ख़्याल आते थे।
“मेरी माँ को एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है और इसलिए उन्होंने मुझे किसी पेशेवर से मदद लेने के लिए कहा। इसके बाद मेरा उत्कंठा और अवसाद का निदान हुआ।
“जो प्यार और समर्थन मुझे अपने परिवार, काउंसेलर और मनोचिकित्सक से मिला उससे उन अंधकारमय दिनों में मेरा हौसला बना रहा।
''इस स्थिति से उबरने की यात्रा के दौरान मुझे मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक और इसके प्रति जागरूकता की कमी का आभास हुआ और ऐसा लगने लगा कि मुझे कम से कम एक जान तो बचानी ही है। इसी ज़रूरत से मुझे अपनी बीमारी का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने और द लिव लव लाफ फाउंडेशन की स्थापना करने की प्रेरणा मिली।
“मानसिक बीमारी ने हमारे सामने एक बेहद कठिन चुनौती पेश की है। पहले से कहीं ज़्यादा आज के समय की मांग यही है कि हम मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों सहित हर व्यक्ति की ज़रूरतों को प्राथमिकता दें।
“इस बीमारी के साथ मेरा रिश्ता कभी प्यार तो कभी नफरत भरा रहा है और इसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है - धीरज रखना, यह कि आप अकेले नहीं हैं और सबसे ज़रूरी बात यह कि उम्मीद कायम है।"