आप अकेले नहीं हैं

किशोरों के लिए मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (2016-2022)


किशोरावस्था एक मुश्किल दौर हो सकता है क्योंकि इस दौरान अजीब-से नए अनुभव होते हैं और शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक स्तरों पर कई बड़े बदलाव आते हैं। शैक्षिक प्रदर्शन, भविष्य की परियोजनाएँ बनाना, अकेलापन जैसे विभिन्न तरह के एहसास होना, दूसरों से जुडने की चाह और अपनी पहचान की खोज करना कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनका सामना इस उम्र के बच्चे को करना पड़ता है। इन चुनौतियों का असर उनके मानसिक कल्याण पर पड़ सकता है। इसलिए, शुरू के सालों में मानसिक स्वास्थ्य को सही तरीके से संबोधित करने पर किशोर-किशोरियाँ वयस्कों के रूप में खुशहाल जीवन जी सकते हैं। 


उद्देश्य 


आप अकेले नहीं हैं (यू आर नॉट अलोन) की शुरुआत किशोरों, शिक्षकों और माता-पिताओं के लिए साल 2016 में इन उद्देश्यों के साथ की गई थी:

 
i) स्ट्रेस, ऐंगज़ाइटी और डिप्रेशन के बारे में जागरूकता बढ़ाना;
ii) मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातचीत को स्वाभाविक बनाना;
iii) मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक को मिटाना;
iv) मदद की खोज करने की आदत को प्रोत्साहित करना; और 
v) लचीलेपन का विकास करना। 

कार्यान्वयन

इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन विश्वसनीय मानसिक स्वास्थ्य संगठनों के साथ साझेदारी में किया गया था। जागरूकता सत्र स्ट्रेस के लक्षण, ऐंगज़ाइटी और डिप्रेशन, बुलिंग (धौंस जमाना) और साइबर बुलिंग, कोपिंग (निपटने) तकनीक और विश्वसनीय सूत्रों से मदद मांगने जैसे मुद्दों पर आयोजित किए गये थे। कक्षा 6 से 12 के विद्यार्थियों और उनके शिक्षकों को अलग-अलग सत्रों में संबोधित किया गया था। सभी प्रतिभागियों को जानकारी पुस्तिका दी गई थी और ये उनके माता-पिताओं के लिए भी उपलब्ध करवाए गये थे।

इस कार्यक्रम को निःशुल्क बैंगलोर, पुणे, चेन्नई, गुवाहाटी, भुवनेश्वर, दिल्ली, मुंबई, कोयंबतूर , बडौदा, देहरादून, भावनगर, कोचीन, कोलकाता, गोवा और अहमदाबाद के प्राइवेट और पब्लिक स्कूलों में डिलीवर किया गया था। इसे छह भाषाओं में प्रस्तुत किया गया था – अंग्रेज़ी, हिन्दी, तमिल, उड़िया, कन्नड और गुजराती।

कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूलों की जरूरत के आधार पर हमने हाइब्रिड मॉडेल के माध्यम से इसका संचालन किया था जिसमें आमने-सामने और ऑनलाइन, दोनों तरह से सत्र थे।

  • डिलीवरी का माध्यम
    ऑनलाइन और ऑफलाइन
  • भाषाएँ
    अंग्रेज़ी, हिंदी, तमिल, उड़िया
  • शुल्क
    मुफ्त
  • लक्षित दर्शक
    छठी से बारहवीं कक्षाओं के विद्यार्थी
  • भौगोलिक क्षेत्र
    भारत
  • सत्र इन शहरों में उपलब्ध हैं
    बैंगलोर, पुणे, चेन्नई, गुवाहाटी, भूबनेश्वर, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद
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20 %

किशोर विश्व स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का अनुभव करते हैं

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50 %

सभी मानसिक बीमारियां 14 वर्ष की आयु से शुरू होती हैं और अक्सर अनिर्धारित और अनुपचारित होती हैं

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10 %

5-16 वर्ष की आयु के बच्चों में नैदानिक ​​रूप से निदान मानसिक समस्या है

प्रभावशीलता अध्ययन

2016 से 2020

(ऑफलाइन सत्र, महामारी से पहले)

12 से 18 साल के 9,827 विद्यार्थियों में से 77.14 प्रति शत ने इससे पहले किसी मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सत्र में भाग नहीं लिया था। हमारे प्रोग्राम के सत्रों में भाग लेने के बाद 80 प्रति शत प्रतिभागी उदासी और डिप्रेशन में फर्क कर पा रहे थे; 88 प्रति शत को विश्वास था कि मानसिक बीमारी की वजह से शर्मिंदगी महसूस नहीं होनी चाहिए; और 90 प्रति शत ने इस बात की पुष्टि की कि जिन लोगों पर उन्हें विश्वास है उनके साथ मन की बातें या भावनाओं को साझा करने से मदद मिलती है।

2022 से 2023

(ऑफलाइन सत्र, महामारी के बाद)

12 से 18 साल के 4,000 विद्यार्थियों में से 97 प्रति शत ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य का महत्व शारीरिक स्वास्थ्य के बराबर है और 88 प्रति शत ने कहा कि मानसिक बीमारी को लेकर शर्मिंदा महसूस नहीं करना चाहिए। 79 प्रति शत को लगता है कि मदद मांगना कमज़ोरी की निशानी नहीं है और 90 प्रति शत का मानना है कि जरूरत के समय किसी की बातें सुनकर वे उनकी मदद कर सकते हैं।

संसाधन

विषय-वस्तु में विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई जानकारी वाली पुस्तिकाएँ विद्यार्थियों, शिक्षकों और माता-पिताओं को दिए गये। इनमें कई विषयों पर जानकारी थी, जैसे मानसिक स्वास्थ्य और बीमारी को समझना, स्ट्रेस, ऐंगज़ाइटी और डिप्रेशन के लक्षणों की पहचान करने के तरीके, और सही संसाधनों से मदद मांगना। हेल्पलाइंस पर भी जानकारी थी। पहुँच को बढ़ाने के लिए कार्यक्रम के संसाधनों का अनुवाद हिन्दी, गुजराती, तमिल, कन्नड और उड़िया में भी किया गया था।

छात्रों के लिए

इस कार्यक्रम को तनाव, चिंता और अवसाद के बारे में छात्रों को शिक्षित करने के लिए बनाया गया है ताकि वे समझ सकें कि मानसिक बीमारी उन्हें या उनके साथियों को किस तरह से प्रभावित कर सकती है और ऐसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के प्रति वे संवेदनशील बन सकें।

शिक्षकों के लिए

शिक्षकों का कार्यक्रम उन्हें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में अवगत कराता है, जिससे वे अपने छात्रों का और अपना समर्थन कर सकें और उन्हें उचित संसाधन मुहैया करा सकें।

माता-पिता के लिए

माता-पिता और अभिभावक किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपने विषय विशेषज्ञों की मदद से हमने एक मुफ्त ऑनलाइन पुस्तिका तैयार की है जिसमें किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के नुस्खे और सलाह है।

अस्वीकारोक्ति: यह पुस्तिका केवल जानकारी देने लिए है। पुस्तिका का वितरण किसी भी प्रकार की व्यक्त या निहित वारंटी के बिना किया जा रहा है। जानकारी की व्याख्या और उपयोग की जिम्मेदारी पाठक की है। किसी भी हालात में इसके उपयोग से उत्पन्न क्षति की देयता टीएलएलएलएफ की नहीं होगी।

2016 में शुरुआत से अब तक

  • शिक्षकों को संवेदनशील बनाया गया है
    24,000+
    पूरे भारत में
  • विद्यार्थियों को जागरूक बनाया गया है
    268,000+
    पूरे भारत में

प्रशंसा पत्र

टी एल एल एल एफ ने पूरे चेन्नई में 7000 से अधिक बच्चों तक पहुँचने में हमारी मदद की है। प्रत्येक सत्र के बाद  हम छात्रों की प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी ने उनकी भाषा में बात की हो और पहली बार उनकी बात सुनी भी हो। छात्र चिंता या उससे प्रभावित अपने विचारों को व्यक्त करने में संकोच नहीं करते हैं और चुपचाप सहने के बजाय मदद लेने के लिए तैयार होते हैं।

शिक्षकों को भी ऐसा ही लगा। फाउंडेशन का दृष्टिकोण  शिक्षकों को अपने छात्रों को बेहतर ढंग  से समझने में मदद करता है और वे वास्तव में खुद को भी समझ पाए हैं।”

राधिका शशांक, इंकलवीव - चेन्नई

एक स्कूल में सत्र के दौरान  एक छात्र मेरे पास आया और कहा कि “सत्र का संचालन करने और बुकलेट साझा करने के लिए आपका धन्यवाद।  अब मेरे पास मदद लेने के लिए कम से कम हेल्पलाइन नंबर हैं।” उसकी इस बात से मुझे यह एहसास हुआ कि मैं किसी तरह से छात्रों की मदद करने में सक्षम हूं।

लड़कियों के एक सरकारी स्कूल में सत्र के समय  कक्षाओं में बुलिइंग की घटनाओं के  बारे में बात करते हुए  छात्राओं ने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा किया और यह भी  बताया कि इसका उन पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने खुलकर बताया कि कैसे इन अनुभवों का उन सभी पर भारी प्रभाव पड़ा। उन्होंने यह भी साझा किया कि आमतौर पर कलंक के कारण इन विषयों पर बात नहीं की जाती है।

प्रिया गुप्ता, ट्रेनर - एनरिच

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