ग्रामीण कार्यक्रम

हर सात में से एक भारतीय को किसी प्रकार की मानसिक बीमारी का अनुभव होता है। मानसिक बीमारी, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, भेदभाव नहीं करती है। यह हर आयु वर्ग, वित्तीय स्थिति, शहरी एवं ग्रामीण परिवेश में मौजूद है। भारत सरकार के आकड़े बताते हैं कि देश की लगभग 70 प्रति शत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है जहाँ समर्थन के पर्याप्त साधन प्राप्त करता चुनौतिपूर्ण है। इस ज़रूरत को समझते हुए लिव लव लाफ ग्रामीण समुदायों की ज़रूरतमंद आबादी का समर्थन करता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 के अवसर पर एलएलएल का ग्रामीण कार्यक्रम तमिलनाडु स्थित तिरुवल्लूर गया था। इस यात्रा की झलकियाँ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

कार्यक्रम के बारे में

यह कार्यक्रम मानसिक रोगों से ग्रसित लोगों को मुफ़्त मनोचिकित्सा एवं उन्हें और उनकी देखभाल करने वालों को पुनर्वास के अवसर मुहैया कराता है। साथ ही मानसिक बीमारियों की रोकथाम और चिकित्सा का सुचारु ढांचा तैयार करता है। कार्यक्रम का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करना और मानसिक बीमारी को सामान्य बनाना भी है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2017 के अवसर पर एलएलएल का ग्रामीण कार्यक्रम कर्नाटक के दावणगेरे गया था। इस यात्रा की झलकियाँ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

  • डिलीवरी का माध्यम
    व्यक्तिगत एवं ऑनलाइन
  • भाषाएँ
    स्थानीय भाषाएँ
  • भौगोलिक परिधि
    मैसूर (कर्नाटक) दावणगेरे (कर्नाटक), गुलबर्गा (कर्नाटक), लक्ष्मीपुर (उड़ीसा), नारायणपटना (उड़ीसा) और तिरुवल्लूर (तमिलनाडु)।

मानसिक विकारों का सामना कर रहे लोगों के लिए

मानसिक विकारों का सामना कर रहे लोगों को मुफ्त मनोचिकित्सा, सहायक समूह की नियमित बैठकें, सरकारी योजनाओं तक पहुंच और पुनरुत्थान प्राप्त होती हैं।

देखभाल करने वालों के लिए

सहायक समूह की नियमित बैठकों को सुगम बनाना, काउंसेलिंग तक पहुंच, मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता शिविर, देखभाल करने की उनकी क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करने के लिए प्रशिक्षण, उन्हें अपने स्वास्थ्य की जरूरतों का ध्यान रखने के काबिल बनाना और अपने परिवार का आर्थिक रूप से समर्थन करने में सक्षम बनाना

समुदाय के लिए

समुदाय पर आधारित जागरूकता कार्यक्रम, जिला और ग्रामीण स्तर के स्थानीय समूहों का गठन एवं पक्षसमर्थन (ऐड्वकसी) के लिए प्रशिक्षण

सरकार का समर्थन

जो भागीदार शामिल हैं:

  • मानसिक रोग चिकित्सक (साइकियाट्रिस्ट) 
  • फ्रंटलाइन सरकारी स्वास्थ्य कर्मी 
  • समुदायों के साथ काम करने वाली संस्थाएँ 
  • जिला स्तरीय सरकारी प्राधिकारी  
  • समुदाय 

2016 में लॉन्च के बाद से

  • 9,277+
    ज़रूरतमंदों तक मदद पहुँचाया गया है
  • 20+
    से अधिक कर्नाटक, उड़ीसा और तमिलनाडु के तालुकों में चालू है

प्रशंसा पत्र

चाँदअन्ना 23 वर्ष का है और एक निम्न-मध्यवित्तीय परिवार से है जिसमें कुल 4 सदस्य हैं। उसमें मानसिक बीमारी के लक्षण 6 साल पहले नज़र आये। वह अक्सर लड़ाई करता, काम पर ध्यान देने में उसे दिक्कत होती, वह ठीक से सो नहीं पाता और उसे अजीब आवाज़े सुनाई देती थी। चाँदअन्ना की मानसिक बीमारी से उसके परिवार पर कहर बरस पड़ा। उसके इलाज के लिए हर महीने 3000 रुपये लगते थे जिसने उसके परिवार को आर्थिक संकट में डाल दिया था। उसकी हालात देखकर उसकी माँ अवसादग्रस्त हो पड़ी और उसे आत्महत्या का ख्याल आने लगा। एलएलएल कार्यक्रम में इन दोनों को दर्ज किया गया जिसके बाद उन्हें मुफ्त दवाइयाँ और इलाज मिलने लगा। परिवार की काउंसेलिंग की गई और उनके लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई ताकि रोज़गार की समस्या का समाधान किया जा सके। इस कार्यक्रम से माध्यम से उनके सम्पूर्ण पुनर्वास और बीमारी से मुक्त होने की प्रक्रिया को मुफ्त में मुहैया कराया गया। इससे उसके परिवार थी स्थिति में भी सकारात्मक बदलाव आया है। चाँदअन्ना की माँ अब कार्यक्रम में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम करती है।

चाँदअन्ना की कहानी

मैं कोरापुट से जागु सीसा हूं। पहले मैं पारंपरिक दवाओं का इस्तेमाल करता था  और अपने इलाज के लिए मैंने अंधविश्वास का भी सहारा लिया,  लेकिन उन सब से मुझे कोई सुधार नहीं दिखा। फिर  मुझे जेयपोर के जिला अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर की सलाह के अनुसार  मैंने अपनी दवाएं लेना जारी रखा। मेरे मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में अब काफी सुधार है और मैं दिन–प्रतिदिन के अपने काम कर लेता हूं। महामारी के दौरान मैं अपनी दवाइयां  नहीं ला पा रहा था,  लेकिन  स्प्रेड  टीम  ने  मेरी  दवाइयां  घर  तक  पहुंचाईं। मैं उनकी इस  मदद के लिए आभारी हूं।

जागु सीसा, कोरापुट - उड़ीसा

केनचम्मा में मानसिक बीमारी के लक्षण दिख रहे थे, जिसमें भूख कम लगना और नींद की गड़बड़ी शामिल थे। उसके परिवार को लगा कि ऐसा बुरी आत्माओं और भगवान से मिली सजा के कारण हो रहा है। वे मंदिरों में गए लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद उसे पड़ोसी जिले के एक वार्ड में भर्ती कराया गया, जहाँ परिवार ने इलाज, दवा, यात्रा आदि पर भारी खर्च किया। मगर चूंकि वे नियमित रूप से दवाईयों का खर्च नहीं उठा पा रहे थे, इसलिए उसके लक्षण दोबारा दिखाई देने लगे। 2019 में उसने अपने गाँव में एक चिकित्सा शिविर में भाग लिया और उसे मुफ्त इलाज और दवा मिलने लगी। उसके माता–पिता अब हर महीने पैसे बचा पाते हैं। उसकी हालत अब स्थिर है, और वह अब कपड़े सिलकर अपने लिए पैसे कमाती है। वह घरेलू काम भी करती है, अपने बूढ़े माता–पिता की देखभाल करती है और खेती के काम में अपने भाई की मदद भी करती है।

केंचाम्मा की कहानी

कार्यान्वयन साथी

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