लेक्चर का सार
डॉ सिद्धार्थ मुखर्जी ने बताया कि कैसे 1950 के दशक में कैंसर एक कलुषित रोग हुआ करता था और कैंसर रोगियों को भेदभाव, डर और तिरस्कार जैसी विभीषिकाओं का सामना करना पड़ता था। “कैंसर का पता चलने पर रोगी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता था। कैंसर वाले मरीज़ों को अस्पताल के पिछले हिस्सों में रखा जाता था। मानसिक विकारों के साथ भी इसी तरह का कलंक जुड़ा हुआ है।” उनका सुझाव है कि राजनीतिक, सामाजिक और जैविक, इन तीन शक्तियों के मेल से ही मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े इस संकट को संबोधित किया जा सकता है।